शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

मकर सक्रांति पर विशेष Makar Sakranti

मकर सक्रांति के दिन भगवान सूर्य अपने पूत्र शनि की राशि मकर में प्रवेश करते हैं । शास्त्र में इस अवधि को विशेष शुभ माना गया है । मान्यता यह भी है कि इस अवसर पर किए गए दान का फल सौ गुना होता है ।

 

क्या है संक्रांति

सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में संचरण का समय सक्रांति कहलाता है । सक्रांति से ही ऋतुएं भी परिवर्तित होती है । यद्यपि सूर्य संक्रांतियां 12 है, परन्तु इनमेसे मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति मुख्य है । मेष संक्रांति में सौर वर्ष का आरम्भ माना जाता है और सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना मकर संक्रांति कहलाता है ।

 

सूर्य पूजा का महत्व

नवग्रहो में सूर्य प्रथम ग्रह है और सभी प्रकार की शक्ति का दाता भी सूर्य देव को ही माना गया है । यही नहीर सूर्य को पिता के भाव कर्म का स्वामी भी माना गया है । पुराणों वेदों आदि धार्मिक ग्रंथों में भगवान सूर्य को जगत का आत्मा बताया गया है । पिता पुत्र के संबंधो में विशेष लाभ के लिए पुत्र को सूर्य की पूजा करनी चाहिए । सूर्य पूजा से प्रत्येक कार्य में सफलता मिलती हैं ।

 

ऐसे करें पूजा

+ सूर्य की पूजा यदि प्रतिदिन करना संभव न हो, तो वर्ष में मकर संक्रांति के दिन विधि अनुसार सूर्य भगवान की पूजा जरुर करें । इस दिन स्नानादि करके लाल वस्त्र पहन कर सूर्य देव को जल अवश्य दें ।
+ यदि जनेऊ धारण किया है, तो वैदिक मंत्रों से भी पूजन करने का विधान है ।
+ सूर्य भगवान को नित्य तांबे के लौटे से कघ्र्य देना भी शुभकारी होता है ।
+ मकर संक्रांति के दिन तिल से बनी चीजें, गुड़, खिचड़ी, कंबल इत्यादि का दान भी शु भ माना गया है ।
+ गेहूं, गुड़ , घी, लाल चंदन, लाल वस्त्र, तांबे के बर्तन, मणिक्य, सूर्य यंत्र, सामथ्र्यनुसार सोना, लाल या भूरी गाय का भी दान कर सकते है ।
+ सूर्य द्वारा पीड़ित जातक सूर्य के रत्न माणिक्य का विधिपूर्वक रत्न प्रतिष्ठा करके धारण करें ।
+ सूर्य पूजा के बाद दक्षिणा पश्चात इस मंत्र का उच्चारण करें -
नाना सुगंधि पुष्पाणि यथा कलोद भवानि ।
पुष्पांजलि मर्यादत ग्रहाण परमेश्वरिः ।।



सुविचार-
घमण्डी के लिए कोई ईश्वर नहीं, 
ईष्र्यालु का कोई पड़ोसी नहीं 
और क्रोधी का कोई दोस्त नहीं ।

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें