सोमवार, 26 अगस्त 2013

ईश्वर का अस्तित्व

एक आदमी हमेशा की तरह अपने नाई की दूकान पर बाल कटवाने गया . बाल कटाते वक़्त अक्सर देश-दुनिया की बातें हुआ करती थीं ….आज भी वे सिनेमा , राजनीति , और खेल जगत , इत्यादि के बारे में बात कर रहे थे कि अचानक भगवान् के अस्तित्व को लेकर बात होने लगी .

नाई ने कहा , “ देखिये भैया , आपकी तरह मैं भगवान् के अस्तित्व में यकीन नहीं रखता .”

“ तुम ऐसा क्यों कहते हो ?”, आदमी ने पूछा .

“अरे , ये समझना बहुत आसान है , बस गली में जाइए और आप समझ जायेंगे कि भगवान् नहीं है . आप ही बताइए कि अगर भगवान् होते तो क्या इतने लोग बीमार होते ?इतने बच्चे अनाथ होते ? अगर भगवान् होते तो किसी को कोई दर्द कोई तकलीफ नहीं होती ”, नाई ने बोलना जारी रखा , “ मैं ऐसे भगवान के बारे में नहीं सोच सकता जो इन सब चीजों को होने दे . आप ही बताइए कहाँ है भगवान ?”


आदमी एक क्षण के लिए रुका , कुछ सोचा , पर बहस बढे ना इसलिए चुप ही रहा .


नाई ने अपना काम खत्म किया और आदमी कुछ सोचते हुए दुकान से बाहर निकला और कुछ दूर जाकर खड़ा हो गया. . कुछ देर इंतज़ार करने के बाद उसे एक लम्बी दाढ़ी – मूछ वाला अधेड़ व्यक्ति उस तरफ आता दिखाई पड़ा , उसे देखकर लगता था मानो वो कितने दिनों से नहाया-धोया ना हो .


आदमी तुरंत नाई कि दुकान में वापस घुस गया और बोला , “ जानते हो इस दुनिया में नाई नहीं होते !”

“भला कैसे नहीं होते हैं ?” , नाई ने सवाल किया , “ मैं साक्षात तुम्हारे सामने हूँ!! ”

“नहीं ” आदमी ने कहा , “ वो नहीं होते हैं वरना किसी की भी लम्बी दाढ़ी – मूछ नहीं होती पर वो देखो सामने उस आदमी की कितनी लम्बी दाढ़ी-मूछ है !!”


“ अरे नहीं भाईसाहब नाई होते हैं लेकिन बहुत से लोग हमारे पास नहीं आते .” नाई बोला


“बिलकुल सही ” आदमी ने नाई को रोकते हुए कहा ,” यही तो बात है , भगवान भी होते हैं पर लोग उनके पास नहीं जाते और ना ही उन्हें खोजने का प्रयास करते हैं, इसीलिए दुनिया में इतना दुःख-दर्द है.” . 


शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

एक पेड़ का जंगल





दुनिया का सबसे चौड़ा पेड़ 14400 वर्ग मीटर में फैला है।  कोलकाता  के पास आचार्य जगदीश चन्द्र बोस बाटेनिकल  गार्डन में लगा यह बरगद का पेड़ 250 वर्ष से अधिक समय में इतने बे क्षेत्र में फ़ैल पाया  है। ऐसे में दूर से देखने पर यह अकेला  बरगद का पेड़ एक जंगल क तरह नज़र आता है। दरअसल, बरगद के पेड़ की शाखाओं से जटाये  पानी की तलाश में निचे जमीन की और बदती है।  ये  बाद में   एक जड़ के रूप में पेड़ को पानी और सहारा देने लगती है।  ये सिलसिला चलता जाता है। फ़िलहाल इस बरगद की 2800 से अधिक जटाएं जड़ का रूप ले चुकी है।  19 वीं शताब्दी में यहाँ आये २ चक्रवर्ती तूफानों ने इसकी 50 फीट चौड़ी मूल जड़ को उखाड़ दिया , जो बाद में फंगस लग जाने की कारन खराब हो गयी।  1925 में इस जड़ को काट कर अलग कर दिया गया।  मगर तब तक पेड़ की  कई जटाएं स्थायी जड़ के रूप ले चुकी  थी।  इस कारन  बरगद लगातार बढता जा रहा है। 

सोमवार, 5 अगस्त 2013

खाकी वाले का डर - लघुकथा


लुटेरों को लुटा हुआ माल  वापस  करता देख कर सभी यात्री हैरान रह गए।  एक यात्री ने डरते हुए  - डाकूजी आपने बस को अगवा करके हम सभी यात्रियों से रूपए पैसे जेवरात सब छीन लिए।  फिर सबका माल वापस दे रहे हो , ऐसी दया किसलिए ?
डाकू ने गरजते हुए कहा - ये कोई दया नहीं है।  उस खाकी वाले का डर है जिसे हर लूट के पीछे पचास हजार  रूपए देने पड़ते है।  तुम सबके पास तो चालीस हजार भी नहीं निकले।  जब बस लुटने की खबर कल अखबार में छपेगी तो बाकी रूपए हम कहा से देंगे ?


सुविचार-
खूबसूरत लोग अच्छे नहीं होते,
अच्छे लोग खूबसूरत होते है।