शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

वाणी ही पहचान है


एक बार विक्रमादित्य वन विहार को गए । वहां उन्हें प्यास लगी । वन में एक कुआं था । राजा ने सिपाही से जल लाने को कहा । सिपाही वहां जाकर बोला, 
" ओ ओअंधे, एक लौटा जल दे ।"
नेत्रहीन व्यक्ति ने कहा, 
"जा मूर्ख सिपाही मेरे पास जल नहीं है ।"
सिपाही लौट आया । अब राजा ने सेनापति को भेजा । सेनापति ने कहा,
 "अंधे भाई, एक लौटा पानी दे दो ।"
नेत्रहीन व्यक्ति बोला, 
"कपटी सेनापति मेरे पास जल नहीं हैं ।"
आखिर राजा स्वयं वहां गए और बोले, 
"बाबा जी, प्यास से गला सूख रहा है , कृपया जल पिला दे ।"
नेत्रहीन व्यक्ति ने कहा, 
"महाराज बैठीए, अभी पिलाता हूँ ।"
राजा ने हैरान हो कर पूछा, 
"आपने नेत्र न होते हुए भी यह कैसे जान लिया कि पहले सिपाही, फिर सेनापति और फिर मैं राजा हूँ ।"
नेत्रहीन व्यक्ति ने हंसकर कहा, 
"महाराज व्यक्ति की पहचान उसकी वाणी से ही होती है ।"

वाणी में मधुरता होनी चाहिए । यह मधुरता आपको राजा बनाती है ।


सुविचार-
जीवन में कभी किसी को बेकार मत समझे, क्योंकि बन्द घड़ी भी दिन में दो बार सही समय दिखाती है ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें