किसी भी जीवन शैली की सबसे ऊँची स्थिति है फकीराना अंदाज । हर धर्म के पास ऐसे फकीर मिजाज लोग रहे है । बल्कि इस संत वृत्ति ने ही कुछ धर्मो को बचा रखा है । भारत ने इस प्रवृत्ति को सुंदर प्रबंधकीय तरीके से जोड़कर एक नाम दिया है, वह है सन्यास । तीन तरीके यहाँ पहुँचा गया है । पहला ब्रह्मचारी रहते हुए लोगो ने सीधा सन्यास में छलांग लगा दी । दूसरे वे है, जो गृहस्थ रहे और परिस्थितिवश गृहस्थी से मुक्त हो कर सन्यासी बन गए । तीसरी स्थिति यह है कि गृहस्थी में है और यहाँ रहकर सन्यासी की तरह जी रहे है । एक चौथा वर्ग ऐसा भी है , जो नाम को कहला तो सन्यासी रहे है, लेकिन वस्त्रो के पीछे, आवरण के नीचे पूरी तरह से दुनियादारी में उलझे है ।
सन्यास एक और अर्थ है कि मनुष्य पूरी तरह से पशुत्व से देवत्व की ओर चला जाए ।भारत ने इसके लिए एक और सुंदर व्यवस्था दी है । वैवाहिक जीवन, इसमे रहकर मनुष्य त्याग और आत्मीयता का पाठ पढ़ता है । स्त्री पुरूष जब गृहस्थी बसाते है, तब संतान भी पैदा होती है । जीवन में संतान आते ही त्याग, प्रेम, साहचार्य के सही अर्थ समझ में आने लगते है ।
माता पिता बनने के बाद आत्म विलिकरण जैसी स्थिति समझ में आने लगती है । जिन्हें सीधे छलांग लगाकर सन्यास जैसी स्थिति का अवसर न मिला हो , वे गृहस्थी से गुजरकर इसका लाभ उठाएं ।विरक्ति और योग की लक्ष्मण रेखा दाम्पत्य जीवन में सरलता से देखी जा सकती है । आकांक्षाए कैसे सत् की ओर मोड़ी जाए , यहाँ समझ में आएगा । लहरो पर रहते हुए उसकी उमंग व समुन्द्र की गहराई का स्पर्श दोनो गृहस्थी में है । और फिर सन्यास अपनाना अलग ही आनन्द का विषय होगा ।
- पं. विजयशंकर मेहता
सन्यास एक और अर्थ है कि मनुष्य पूरी तरह से पशुत्व से देवत्व की ओर चला जाए ।भारत ने इसके लिए एक और सुंदर व्यवस्था दी है । वैवाहिक जीवन, इसमे रहकर मनुष्य त्याग और आत्मीयता का पाठ पढ़ता है । स्त्री पुरूष जब गृहस्थी बसाते है, तब संतान भी पैदा होती है । जीवन में संतान आते ही त्याग, प्रेम, साहचार्य के सही अर्थ समझ में आने लगते है ।
माता पिता बनने के बाद आत्म विलिकरण जैसी स्थिति समझ में आने लगती है । जिन्हें सीधे छलांग लगाकर सन्यास जैसी स्थिति का अवसर न मिला हो , वे गृहस्थी से गुजरकर इसका लाभ उठाएं ।विरक्ति और योग की लक्ष्मण रेखा दाम्पत्य जीवन में सरलता से देखी जा सकती है । आकांक्षाए कैसे सत् की ओर मोड़ी जाए , यहाँ समझ में आएगा । लहरो पर रहते हुए उसकी उमंग व समुन्द्र की गहराई का स्पर्श दोनो गृहस्थी में है । और फिर सन्यास अपनाना अलग ही आनन्द का विषय होगा ।
- पं. विजयशंकर मेहता
सुविचार
जो लोग धर्म के काम में हाथ बंटाते है, उनके हाथ कल्प वृक्ष की भाँति हो जाते है ।
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