मंगलवार, 21 अगस्त 2012

कहाँ खो गई गोरेया

वो नन्ही सी जान थी 

हर आँगन की मुस्कान थी

आज वो हमसे रूठ गई

जबसे आंगन की हरयाली

आधुनिकता की तेजी लूट गई !!



शहरो की ऊँची चार दीवारी

गर्दन कटी पेड़ो की सारी

बिन आँचल के वसुंधरा हे रोई

इज्ज़त शहर की गलियों में खोई !!



शहर के बेदर्द कहर को देख

आँखे गौरैया की भर भर आई

लूटा उन्होंने ही उस मासूम को

आँगन में जिनके हर पल चहचहाई !!



अब वृक्ष रहे न आंगन ही घर के

जीवत रहे भला केसे वो मर मर के

चारो तरफ आधुनिकता की गंदगी

मौत से लटकी गौरैया की ज़िन्दगी !!



घर के आंगन में अब केसे चेह्चहाये

साँसे उसकी अब रुक रुक के आयें

जीवन के ही रखवाले ने जब

सुंदर सुंदर जाल बिछाए !!



कभी फुदकती थी खिड़की पर वो

कभी रोशनदान पर चहचहाती

कभी बैठती आँगन में वो

कभी बिजली की तारो पर चढ़ जाती !!



भोर निकलते ही सूरज के साथ

चेहचाहट गौरिया की साथ में आती

मन को मोह लेती वो छोटी सी चिडया

कभी देखती वो टिक टिकी लगाकर

कभी प्यार से गर्दन वो हिलाती !!



आज की इस आधुनिकता की दौड़ ने

मकान के ऊपर मकान हे बनाये

बंजर किया वसुंधरा की कोख को

गौरिया भला अब केसे जी पाए !!



उजड़ गया संसार गौरैया का

अब कहा अपना आशियाना बनाये

वृक्ष रहे न आँगन ही

सब मानव की भेंट चदाये !!



गौतम ये केसे अंधी दौड़ हे

बस हौड से लगी हौड हे

क्यों भुला सबकुछ इस हौड में

गिरेगा एक दिन इस अंधी दौड़ में !!



आखिर क्यों ये मानव रुपी दानव

सबकुछ ताक़ पर रख रहा

क्यों मुर्ख इंसान आज का

धड़कते हुए अंगारे सी वसुंधरा पर

कफ़न ओढ़ के चल रहा !!



आज अस्तित्व मिट रहा गौरैया का

कल गौतम तेरा भी मिट जाना हे

आँख खोल ले मन के अंधे

समय लौटकर न ये आना हे !!



आओ मिलकर संकल्प उठाओ

वसुंधरा को फिर से हे सजाओ

देदो उसको उसके हरयाली के आभूषण

गौरैया को फिर से जीवनदान दिलाओ !!



फिर से गौरैया आंगन में चाह्चाहाये

चहचाहट इस नन्ही चिडया की

ना केवल एक किस्सा रह जाये

ना केवल .....................

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