एक बेटा पढ़-लिख कर बहुत बड़ा आदमी बन गया . पिता के स्वर्गवास के बाद माँ ने हर तरह का काम करके उसे इस काबिल बना दिया था. शादी के बाद पत्नी को माँ से शिकायत रहने लगी के वो उन के स्टेटस मे फिट नहीं है. लोगों को बताने मे उन्हें संकोच होता है कि ये अनपढ़ उनकी सास-माँ है...! बात बढ़ने पर बेटे ने...एक दिन माँ से कहा.. " माँ ”_मै चाहता हूँ कि मै अब इस काबिल हो गयाहूँ कि कोई भी क़र्ज़ अदा कर सकता हूँ मै और तुम दोनों सुखी रहें इसलिए आज तुम मुझ पर किये गए अब तक के सारे खर्च सूद और व्याज के साथ मिला कर बता दो . मै वो अदा कर दूंगा...! फिर हम अलग-अलग सुखी रहेंगे. माँ ने सोच कर उत्तर दिया... "बेटा”_हिसाब ज़रा लम्बा है....सोच कर बताना पडेगा मुझे. थोडा वक्त चाहिए. बेटे ने कहा माँ कोई ज़ल्दी नहीं है. दो-चार दिनों मे बता देना. रात हुई,सब सो गए, माँ ने एक लोटे मे पानी लिया और बेटे के कमरे मे आई. बेटा जहाँ सो रहा था उसके एक ओर पानी डाल दिया. बेटे ने करवट ले ली. माँ ने दूसरी ओर भी पानी डाल दिया. बेटे ने जिस ओर भी करवट ली माँ उसी ओर पानी डालती रही. तब परेशान होकर बेटा उठ कर खीज कर. बोला कि माँ ये क्या है ? मेरे पूरे बिस्तर को पानी-पानी क्यूँ कर डाला..? माँ बोली.... बेटा....तुने मुझसे पूरी ज़िन्दगी का हिसाब बनानें को कहा था. मै अभी ये हिसाब लगा रही थी कि मैंने कितनी रातें तेरे बचपन मे तेरे बिस्तर गीला कर देने से जागते हुए काटीं हैं. ये तो पहली रात है ओर तू अभी से घबरा गया ..? मैंने अभी हिसाब तो शुरू भी नहीं किया है जिसे तू अदा कर पाए...! माँ कि इस बात ने बेटे के ह्रदय को झगझोड़ के रख दिया. फिर वो रात उसने सोचने मे ही गुज़ार दी. उसे ये अहसास हो गया था कि माँ का क़र्ज़ आजीवन नहीं उतरा जा सकता. माँ अगर शीतल छाया है. पिता बरगद है जिसके नीचे बेटा उन्मुक्त भाव से जीवन बिताता है. माता अगर अपनी संतान के लिए हर दुःख उठाने को तैयार रहती है. तो पिता सारे जीवन उन्हें पीता ही रहता है. हम तो बस उनके किये गए कार्यों को आगे बढ़ाकर अपने हित मे काम कर रहे हैं. आखिर हमें भी तो अपने बच्चों से वही चाहिए ना ........!
एक माँ चटाई पे लेटी आराम से सो रही थी... कोई स्वप्न सरिता उसका मन भिगो रही थी... तभी उसका बच्चा यूँ ही गुनगुनाते हुए आया... माँ के पैरों को छूकर हल्के हल्केसे हिलाया... माँ उनीदी सी चटाई से बस थोड़ा उठी ही थी... तभी उस नन्हे ने हलवा खाने की ज़िद कर दी... माँ ने उसे पुचकारा और फिर गोद मेले लिया... फिर पास ही ईंटों से बने चूल्हे का रुख़ किया... फिर उनने चूल्हे पे एक छोटी सी कढ़ाई रख दी... फिर आग जला कर कुछ देर उसे तकती रही... फिर बोली बेटा जब तक उबल रहा है येपानी... क्या सुनोगे तब तक कोई परियों वाली कहानी... मुन्ने की आँखें अचानक खुशी से थीखिल गयी... जैसे उसको कोई मुँह माँगी मुराद हो मिल गयी... माँ उबलते हुए पानी मे कल्छी ही चलातीरही... परियों का कोई किस्सा मुन्ने को सुनाती रही... फिर वो बच्चा उन परियों मे ही जैसे खो गया.... सामने बैठे बैठे ही लेटा और फिर वही सो गया... फिर माँ ने उसे गोद मे ले लिया और मुस्काई... फिर पता नहीं जाने क्यूँ उनकी आँखभर आई... जैसा दिख रहा था वहाँ पर सब वैसा नही था... घर मे इक रोटी की खातिर भी पैसा नही था... राशन के डिब्बों मे तो बस सन्नाटापसरा था... कुछ बनाने के लिए घर मे कहाँ कुछ धरा था... न जाने कब से घर मे चूल्हा ही नहींजला था... चूल्हा भी तो बेचारा माँ के आँसुओं सेगला था... फिर उस बेचारे को वो हलवा कहाँ से खिलाती... उस जिगर के टुकड़े को रोता भी कैसे देख पाती... वो मजबूरी उस नन्हे मन को माँ कैसे समझाती... या फिर फालतू मे ही मुन्ने पर क्यूँ झुंझलाती... इसलिए हलवे की बात वो कहानी मे टालती रही... जब तक वो सोया नही, बस पानी उबालतीरही
हर ख़ुशी है लोंगों के दामन में , पर एक हंसी के लिये वक़्त नहीं . दिन रात दौड़ती दुनिया में , ज़िन्दगी के लिये ही वक़्त नहीं . सारे रिश्तोंको तो हम मार चुके, अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं .. सारे नाम मोबाइल में हैं , पर दोस्ती के लिये वक़्त नहीं . गैरों की क्या बात करें , जब अपनों के लिये ही वक़्त नहीं . आखों में है नींद भरी , पर सोने का वक़्त नहीं . दिल है ग़मो से भरा हुआ , पर रोने का भी वक़्त नहीं . पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े, की थकने का भी वक़्त नहीं . पराये एहसानों कीक्या कद्र करें , जब अपने सपनों के लिये ही वक़्त नहीं तू ही बता ऐ ज़िन्दगी , इस ज़िन्दगी का क्या होगा, की हर पल मरने वालों को , जीने के लिये भी वक़्त नहीं .......