गुरुवार, 21 मार्च 2013

ठण्डी रोटी का अर्थ

एक लड़का था. उसकी माँ ने उसका विवाह कर दिया. लेकिन लड़का कुछ नहीं कमाता था. माँ जब भी उसको रोटी परोसती थी, तब वह कहती कि बेटा, ठंडी रोटी खा लो. लड़के की समझ में यह नहीं आया कि माँ ऐसा क्यों कहती है. फिर भी वह चुप रहा. एक दिन उसकी माँ काम से बाहर गई तो जाते समय अपनी बहू को कह गई कि जब लड़का आए तो उसे रोटी परोस देना. रोटी परोसकर कह देना कि ठण्डी रोटी खा लो. उसने अपने पति से वैसा हीं कह दिया तो वह चिढ़ गया कि माँ तो कहती हीं है, यह भी कहना सीख गई. वह अपनी पत्नी से बोला कि बताओ, रोटी ठण्डी कैसे हुई ? रोटी भी गर्म है, दाल-साग भी गर्म हैं, फिर तू ठण्डी रोटी कैसे कहती है ? वह बोली कि यह तो माँ जाने. माँ ने मुझे ऐसा कहने के लिए कहा था, इसलिए मैंने कह दिया. वह बोला कि मैं रोटी नहीं खाऊंगा. माँ तो कहती ही थी, तू भी सीख गई.
माँ घर आई तो उसने बहू से पूछा कि क्या लड़के ने भोजन कर लिया ? वह बोली कि उन्होंने तो भोजन किया हीं नहीं, उल्टा नाराज हो गए. माँ ने लड़के से पूछा तो वह बोला कि माँ, तू रोजाना कहती थी कि ठण्डी रोटी खा लो और मैं सह लेता था, अब यह भी कहना सीख गई. रोटी तो गरम होती है, तू बता कि रोटी ठण्डी कैसे है ? माँ ने पूछा कि ठण्डी रोटी किसे कहते हैं ? लड़का बोला- सुबह की बनाई हुई रोटी शाम को ठण्डी होती है. ऐसे ही एक दिन की बनाई हुई रोटी दूसरे दिन ठण्डी होती है. बासी रोटी ठण्डी और ताजी रोटी गरम होती है. माँ ने कहा- बेटा, अब तू विचार करके देख. तेरे बाप की जो कमाई है, वह ठण्डी बासी रोटी है. गरम, ताजी रोटी तो तब होगी, जब तू खुद कमाकर लाएगा. लड़का समझ गया और माँ से बोला कि अब मैं खुद कमाऊँगा और गरम रोटी खाऊंगा.

सुविचार:

 एक को मजबूती से पकड़ लो तो अनेकों की चापलूसी नहीं करनी पड़ेगी ।

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