इंसान पहले गरीब होता है
फिर कुछ पैसा कमा लेता है
उसके बाद खुद की दूकान लेता है
फिर मकान खरीदता है
उसके बाद कमाई चालु रहे तो उसके मन में विचित्र फितरत पैदा होती है
इसके लिए वो हर चीज ब्रांडेड खरीदता है
चाहे वो कपडा मोबाइल गाडी या घडी हो !
फिर जब थोडा गलत समय आ जाए तो उसको अपना स्टैण्डर्ड मेन्टेन करने में दिक्कत आती है और इंसान अपने बुरे समय को कोसना शुरू कर देता है !
अरे भाई अपने शौक सिमित रखिये ताकि आपको बुरे समय में ज्यादा तकलीफ न हो !
बाकी समय तो समय है, आज तक किसी का नहीं हुआ !
चढता सूरज भी ढल जाता है तो इंसानों की क्या औकात ?
फिर कुछ पैसा कमा लेता है
उसके बाद खुद की दूकान लेता है
फिर मकान खरीदता है
उसके बाद कमाई चालु रहे तो उसके मन में विचित्र फितरत पैदा होती है
स्टैण्डर्ड मेन्टेन की
इसके लिए वो हर चीज ब्रांडेड खरीदता है
चाहे वो कपडा मोबाइल गाडी या घडी हो !
यहीं से उसका पतन शुरू होता है
उसका आधा पैसा इसलिए खर्च होता है की वो दुनिया को दिखा सके की वो पैसे वाला है !
उसका आधा पैसा इसलिए खर्च होता है की वो दुनिया को दिखा सके की वो पैसे वाला है !
फिर जब थोडा गलत समय आ जाए तो उसको अपना स्टैण्डर्ड मेन्टेन करने में दिक्कत आती है और इंसान अपने बुरे समय को कोसना शुरू कर देता है !
बाकी समय तो समय है, आज तक किसी का नहीं हुआ !
चढता सूरज भी ढल जाता है तो इंसानों की क्या औकात ?